Saturday, January 28, 2012

बारिश की टिप टिपाती बूंदों से,
मुझे तुम्हारा वो कहकहे लगाना याद आता है,

ठन्डे पानी के गिलास पर ढलकती हुई शबनम से,
तुम्हारा वो मेरी बांहों में झूल जाना याद आता है,

सिल पर पड़े हुए उस चाय के कप के निशान से,
हमारा वो साथ पल बिताना याद आता है,

जब कभी गर पहनती हूँ
मै हाथों में चूड़ियाँ,
मुझे तुम्हारा वो अठखेलियाँ करना याद आता है,

शाम की ढलती धूप में जब चलती हूँ मै,
मुझे वो अपने साथ तुम्हारा साया याद आता है,

रात को थककर जब घर आऊं मै,
तुम्हारा वो पास बुलाना याद आता है,

नहीं पसंद मुझे दुनिया की कहानियाँ अब कोई,
हरेक में हमारा फ़साना याद आता है,

पीने की हद भी पार ना कर पायी मै,
हर जाम में तुम्हारा अक्स याद आता है,

जब हर रात भिगोती हूँ तकिये को पलकों तले,
तुम्हारा वो अपनी बाहों में गर्माहट देना याद आता है,

अँधेरे सन्नाटे अब पहले की तरह डराते नहीं मुझे,
तुम्हारा वो आवाज़ देना याद आता है,

यूँ तो याद
हैं मुझे हमारे साथ बिठाये हुए सभी पल,
पर जानते हो?

सबसे ज्यादा तुम्हारा यूँ मुझे भीड़ में अकेला छोड़ जाना याद आता है.









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